Kali Jeeri
*काली जीरी*
Purpel Fleabane
कालीजीरी किसी भी तरह के जीरे से अलग है। इंग्लिश में इसे पर्पल फ़्लीबेन कहते हैं
कालीजीरी स्वाद में कड़वा और तेज गंध वाला होता है, इसलिए इसे किसी भी तरह के भोजन बनाने में प्रयोग नहीं किया जाता। इसको केवल एक दवा की तरह ही प्रयोग किया जाता है।
आयुर्वेद में इसे कृमिनाशक की तरह प्रयोग किया जाता है।
इसका सेवन और बाह्य प्रयोग से सफ़ेद दाग, खुजली, एक्जिमा, आदि। ठीक होते हैं
इसे सांप या बिच्छु के काटे पर भी लगाते हैं।
काली जीरी आकार में छोटी और स्वाद में तेज, तीखी होती है। इसका फल कडुवा होता है। यह पौष्टिक एवं उष्ण वीर्य होता है। यह कफ, वात को नष्ट करती है और मन व मस्तिष्क को उत्तेजित करती है। इसके प्रयोग से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं और खून साफ होता है। त्वचा की खुजली और उल्टी में भी इसका प्रयोग लाभप्रद होता है।
यह त्वचा के रोगों को दूर करता है, पेशाब को लाता है एवं गर्भाशय को साफ व स्वस्थ बनाता है।
यह सफेद दाग (कुष्ठ) को दूर करने वाली, घाव और बुखार को नष्ट करने वाली होती है।
सांप या अन्य विषैले जीव के डंक लगने पर भी इसका प्रयोग लाभकारी होता है।
यह कृमिनाशक और विरेचक है।
यह गर्म तासीर के कारण श्वास, कफ रोगों को दूर करती है।
मूत्रल होने के कारण यह मूत्राशय, की दिक्कतों और ब्लड प्रेशर को कम करती है।
यह हिचकी को दूर करती है।
यह एंटीसेप्टिक है चमड़ी की बिमारियों जैसे की खुजली, सूजन, घाव, सफ़ेद रोग, आदि सभी में बाह्य रूप से लगाई जाती है
काली जीरी को चमड़ी के रोगों में नीम के काढ़े के साथ व मालिश करना चाहिए।
भयंकर चमड़ी रोगों में, काली जीरी + काले तिल बराबर की मात्रा में लेकर, पीस कर 4 ग्राम की मात्रा में सुबह, एक्सरसाइज की बाद पसीना आना पर लेना चाहिए। ऐसा साल भर करना चाहिए।
पाइल्स या बवासीर में, 5 ग्राम कालाजीरी लेकर उसमे से आधा भून कर और आधा कच्चा पीसकर, पाउडर बनाकर तीन हस्से कर के दिन में तीन बार खाने से दोनों तरह की बवासीर खूनी और बादी में लाभ होता है।
पेट के कीड़ों में इसके तीन ग्राम पाउडर को अरंडी के तेल के साथ लेना चाहिए।
कुष्ठ में, कालीजीरी + वायविडंग + सेंधानमक + सरसों + करंज + हल्दी को गोमूत्र में पीस कर लगना चाहिए।
इसको 1-3 ग्राम की मात्रा में लें। इससे अधिक मात्रा प्रयोग न करें।
कृमिनाशक की तरह प्रयोग करते समय किसी विरेचक का प्रयोग करना चाहिए।
यह बहुत उष्ण-उग्र दवा है।
गर्भावस्था में इसे प्रयोग न करें।
यह वमनकारक है।
अधिक मात्रा में इसका सेवन आँतों को नुकसान पहुंचाता है।
यदि इसके प्रयोग के बाद साइड इफ़ेक्ट हों तो गाय का दूध / ताजे आंवले का रस / आंवले का मुरब्बा खाना चाहिए।
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